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क्या 97% अंक लाकर भी बच्चा असफल है? | पंकज ओझा RAS की प्रेरणादायक मन की बात


Inspirational Talk by RAS Pankaj Ojha 

मन की बात वरिष्ठ आर.ए.एस. पंकज ओझा के साथ

आज की शिक्षा प्रणाली एक अंकों की अंधी दौड़ बन चुकी है। बच्चों से उम्मीद की जाती है कि वे 95% से ऊपर लाएं, टॉप करें, मेरिट में आएं — वरना वे पीछे छूट जाएंगे। नतीजा? बच्चे अवसाद, तनाव और आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहे हैं। और सबसे दुखद बात यह है कि 97% अंक लाने वाला बच्चा भी खुद को असफल मानने लगा है।

Is this the education we really wanted?

क्या हम वास्तव में यही शिक्षा चाहते थे?

हमें यह स्वीकार करना होगा कि हर बच्चा खास होता है, उसकी अपनी रुचि, क्षमता और सपने होते हैं। लेकिन वर्तमान शिक्षा व्यवस्था उसे सिर्फ एक मापदंड — अंकों — से तौलती है। क्या यह न्यायसंगत है?

हर कोई डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता — और बनना भी जरूरी नहीं है। आज के दौर में लॉ, मीडिया, रिसर्च, खेल, एनिमेशन, डिजाइन, सामाजिक सेवा, फैशन, पर्यटन जैसे अनगिनत क्षेत्र हैं जहां उज्जवल भविष्य संभव है।

शिक्षा का उद्देश्य केवल मार्कशीट भरना नहीं, बल्कि एक बेहतर इंसान बनना और जीवन का उद्देश्य पहचानना होना चाहिए।

क्या आप जानते हैं?

थॉमस एडिसन को स्कूल से निकाल दिया गया था, उन्हें "सीखने में अयोग्य" कहा गया। बाद में उन्होंने बल्ब का आविष्कार कर दुनिया को रोशन किया।

अल्बर्ट आइंस्टीन बचपन में बोल नहीं पाते थे और स्कूल में बेहद कमजोर माने जाते थे। आज उनका नाम बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।


रिचर्ड ब्रैनसन, वर्जिन ग्रुप के संस्थापक, डिस्लेक्सिया से जूझे और पढ़ाई में असफल रहे, पर आज अरबों की कंपनी चला रहे हैं।


डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, एक साधारण परिवार से आए लड़के ने बिना किसी बड़े संसाधन के देश का 'मिसाइल मैन' और राष्ट्रपति बनकर दिखाया।


सचिन तेंदुलकर कभी पढ़ाई में अव्वल नहीं रहे, लेकिन उन्होंने भारत को गौरव दिलाने वाला क्रिकेट का भगवान बनकर इतिहास रच दिया।


विन्सेंट वान गॉग: वान गॉग को अपने जीवनकाल में केवल एक पेंटिंग बेचने का अवसर मिला, और वह भी एक मित्र को। लेकिन उन्होंने पेंटिंग करना जारी रखा और अंततः उनकी कला को व्यापक रूप से सराहा गया। आज, वे एक प्रसिद्ध कलाकार के रूप में जाने जाते हैं, और उनकी पेंटिंग दुनिया भर में संग्रहालयों में प्रदर्शित होती हैं। 


अब्राहम लिंकन: लिंकन को अपने जीवनकाल में कई असफलताओं का सामना करना पड़ा, जिसमें राजनीतिक पद के लिए 18 चुनाव हारना, और व्यवसाय में असफल होना शामिल है। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंततः अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उन्होंने देश को एकजुट किया और दासता को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


जोस फेलिसियानो जन्मजात नेत्रहीन थे। जैसे-जैसे वे बड़े होते गए उनके मन में दुनिया को जानने की इच्छा बढ़ती गई।फिर उन्होंने सोचा कि मैं दुनिया का सबसे अच्छा संगीतकार बनना चाहता हु, उनके दोस्त उन पर हंसते रहे। पर उन्होंने जी तोड़  अभ्यास शुरू किया और एक दिन विश्व के सबसे बड़े गिटार वादक बने। ये अलग  बात है कि उन्होंने इतना अभ्यास किया कि उनके हाथों से खून निकलने लगे जाता था।


रविन्द्रनाथ टैगोर बचपन में पढ़ाई के प्रति खास रुचि नहीं रखते थे। उन्हें औपचारिक शिक्षा से नफरत थी और वे स्कूल के बजाय घूमने और प्रकृति के साथ समय बिताना पसंद करते थे. हालाँकि, उन्हें अपने परिवार और शिक्षकों से साहित्य, संगीत और कला में प्रेरणा मिली, जो उनकी प्रतिभा को विकसित करने में सहायक हुई. बाद में उन्होंने नोबेल अवार्ड लिया।


● अमिताभ बच्चन को आवाज के कारण रिजेक्ट कर दिया गया था। 

हेमामालिनी को एक्ट्रेस बनने लायक ही नही समझा गया था। उनको ऑडिशन से रिजेक्ट कर फ़िया गया था।

रविन्द्र जैन नेत्रहीन होने के बाद भी प्रख्यात गीतकार और विख्यात संगीतकार और गायक बने।

इन उदाहरणों से साफ है — सफलता सिर्फ नंबरों से नहीं, नजरिए और मेहनत से मिलती है।

तो आइए...

अपने बच्चों की रुचियों को समझें, उनके सपनों को सुनें, उन्हें सिर्फ नंबर लाने की मशीन न बनाएं।

 उन्हें यह महसूस कराएं कि वे जो हैं, जैसे हैं — अपूर्ण नहीं, अपार संभावना हैं।

 शिक्षा को प्रतियोगिता नहीं, प्रेरणा बनाएं।

क्योंकि अंत में मार्कशीट नहीं, जीवन की मुस्कान ही असली जीत है। असली जीवन मे गोल्ड मेडलिस्ट हार जाते हैं और ग्रेजुएशन में थर्ड डिवीजन वास होने वाले लक्ष्मी निवास मित्तल दुनिया के सबसे बड़े स्टील किंग बन जाते हैं।

जीवन अंतहीन संभावनाओं से भरा हसीन सफर है। हर एक हार के बाद भी जीवन में अनेक शिखर है जिन्हें अपनी हिम्मत मेहनत और जुनून से छुआ जा सकता है।

बच्चों आगे बढ़ो वो खुला आसमान आपके इंतेज़ार में है।

अनन्त शुभकामनाएं!


पंकज ओझा RAS ,धर्मध्वजा रक्षक