बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

तीर्थराज लोहार्गल धाम का इतिहास

लोहार्गल । लोहार्गल धाम झुंझुनू जिले के अंदर नवलगढ़ तहसील राजस्थान में आता है आज से हजारों साल पहले  द्वारका युग के अंदर लोहार्गल को ब्रम्ह्रदय के नाम से जाना जाता हे उस समय वहां पर 24 कोस के अंदर एक समंदर था वह ब्रम्ह द्वारा रचित था भगवान विष्णु का पहला अवतार उसी समुंदर में मत्स्य अवतार हुआ था उस समय मत्स्य अवतार लेकर शंखासुर का वध किया उस समय ब्रम्हद या (समुंदर) मैं जब भी  कोई जीव जंतु या पराणी पानी को पी लेता था वह सीधा सर्वग चला जाता था तो देवताओं में चिंता का विषय बन गया है पाप करने वाला जल पीने से मोक्ष को प्राप्त होता है तो हमारा क्या काम है दुखी होकर सभी देवता विष्णु भगवान के पास गए तब विष्णु भगवान ने बताया सुमेरु पर्वत के पौत्र माल और केतु दोनों भाइयों को मेरा आदेश दे दो कि वह ब्रम्हद( समुनदर) को ढक ले विष्णु भगवान का आदेश पाकर माल और केतु दोनों ने समुंदर को अपने नीचे ढक लिया उसके बाद पर्वत के नीचे से 7 धाराएं निकले पहली धारा लोहार्गल ओ दूसरी किरोड़ी तीसरी शाकंभरी चौथी नाग कुंड पांचवीं टपकेश्वर छठे रघुनाथ कुंड सातवें खोरी कुंड धाराओं को देखकर के देवताओं में चिंता का विषय फिर बन गया इतने में आकाशवाणी शुरु हुई और यह बोला गया अब जो इस जल को पिएगा या स्पर्श करेगा वह सीधे मुक्तिधाम में नहीं जाएगा जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल पाएगा यहां स्नान करने से सिर्फ पुनय की प्राप्ति होगी तब देवताओं के मुंह पर कुछ खुशी की लहर दौड़ पड़ी हो और विशाल  श्रंखला को देखकर द्वारपा युग के अंदर इसका नाम संखपदम रख दिया कुछ वर्षों पश्चात महाभारत का युद्ध शुरू हुआ युद्ध में विजय पांडवों की हुई और उनके हाथ से उनके शो भाइयों की मृत्यु हो गई तो गोत्र हत्या भाई हत्या एक समान है तो
पांडवों ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की हे प्रभु हमें इस पाप से मुक्ति पाने का कोई रास्ता बताओ तब भगवान  इस संसार में ऐसी एक  जगह है जहां पर स्नान करने से तुम्हें पाप से मुक्ति मिल सकती है पांडवों ने कहा है प्रभु हमें कैसे पता चलेगा भगवान विष्णु ने कहा जहां पर तुम्हारे अस्त्र शस्त्र जल में गल जाए समझ लेना पाप से मुक्ति मिल गई हां तब पांडव भर्मन करते हुए पुष्कर पहुंचे तो वहां पर थोड़ा सा फर्क पड़ा तू पांडवों को लगा आगे जरुर कोई तीर्थ है चलते-चलते वह लोहार्गल यानी संख पदम स्थान पर पहुंचे और वहां पर अपना अस्त्र शस्त्र जल में छोड़ा तो वह अस्त्र शस्त्र जल में विलीन हो गई और पांडवों को पाप से मुक्ति मिल गई और पांडवों ने उस जगह का नाम लोहार्गल रख दिया अब पांडव सोमवती अमावस्या का स्नान करना चाहते थे लेकिन उस समय पांडवों ने सोमवती अमावस्या का बाहर वर्ष तक प्रतीक्षा की तब जाकर आई सोमवती अमावस्या को पांडव क्रोधित होकर श्राप दे दिया की तुम कलयुग में बार-बार आओगी और सोमवती कलयुग में बार-बार आती रहती है अमावस्या के दिन स्नान किया वह अमावस्या उस समय भाद्र मास के अंदर आई आज भी भाद्र अमावस्या को लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और लोहार्गल कुंड में स्नान करते हैं माना जाता है कि कुंड में स्नान करने से पाप से मुक्ति मिलती है शेखावाटी क्षेत्र का लोहार्गल को हरिद्वार कहते है आज देखा जाता है कि हिंदू समाज में जिस किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उनकी अस्तियों को लोहार्गल गंगा में प्रवाहित किया जाता है और वह अस्तियां जल में मग्न हो जाती है अर्थार्थ समाप्त हो जाती है आज लोहार्गल धाम राजस्थान का बड़ा ही शिरोमणि स्थान है उसे देवों की तपोभूमि भी कहते हैं यहां  मंदिरों की 80संख्या है मुख्य मंदिरों में माल केतु मंदिर रघुनाथ जी का बड़ा मंदिर शिव मंदिर गोपीनाथ जी का मंदिर श्री सूर्य मंदिर सुखदेव जी का मंदिर बारह महादेव मंदिर आदि हैं लोहार्गल में भादवा मास के अंदर गोगा नवमी से 24 कोस की परिक्रमा लगती है और जो लोहार्गल कुंड से शुरु होकर किरोडी शाकंभरी नाग कुंड टपकेश्वर रघुनाथ कुंड खोरीकुंड और अमावस्या के दिन वापस लोहार्गल में स्नान किया जाता है इस परिक्रमा के अंदर 7 दिन लगते हैं गोगा नवमी से शुरु होकर अमावस्या तक चलती है लाखों श्रद्धालु बाबा मालकेत की 24 कोस की परिक्रमा करके अमावस्या पर लोहार्गल कुंड में स्नान करते हैं
लोहार्गल के नामों का वर्णन
द्वारका के अंदर--- ब्रम्हद
त्रेता के अंदर----संखपदम
सतयुग के अंदर--- लोहार्गल नाम रखा गया

इस लोहार्गल इतिहास में  अगर कोई गलती हुई है तो  अवगत कराएं
रमेश कुमार शर्मा
9829213339


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