डॉ. दीपक आचार्य
उप निदेशक (सूचना एवं जनसंपर्क),
उदयपुर
मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान पुराने बांधों और जलाशयों के लिए नया जीवन देने वाला साबित हो रहा है। खासकर उदयपुर जिले में ऎसी कई जल संरचनाएं फिर से आबाद होने के साथ ही सुनहरा स्वरूप भी प्राप्त करने लगी हैं।
जगे भाग बारां बांध के
ऎसा ही एक बांध है - बारा बांध। उदयपुर जिले की गिर्वा पंचायत समिति के बारा गांव में करीब पाँच दशक पहले जल एवं भूमि संरक्षण के उद्देश्य से पहाड़ियों के बीच बारां तालाब पर करीब चार-पांच दशक पहले जल एवं भू संरक्षण के उद्देश्य से छोटा बांध बनाया गया था जिसे स्थानीय भाषा में नाका कहा जाता है।
यह १४० फीट लम्बा, ८ फीट चौड़ा तथा १२ फीट ऊँचा है। इस बांध में जाबला, पडूना, गादेड़ा, बावड़ी, बोरीमलान, पाटिया आदि गांवों से जुड़े करीब १४ वर्ग किलोमीटर जलग्रहण क्षेत्र से आने वाला पानी इकट्ठा होता था। निर्माण के समय इसकी भराव क्षमता लगभग ५५०० क्यूबिक फीट( ५.५० लाख लीटर) थी किन्तु समय के साथ चट्टान कटाव और पहाड़ी क्षेत्र में बरसाती पानी के साथ आने वाली मिट्टी के भराव से लगभग पूरा बांध गाद (मिट्टी) से भर चुका है।
इस वजह से चाहे कितनी ही बरसात क्यों न हो, सारा का सारा पानी बहकर चला जाता है। तालाब करीब-करीब मैदान का ही रूप धारण कर चुका था। बांध किसी छोटे से पोखर के रूप में दिखने लगा था। इससे आस-पास के इलाकों में पेयजल एवं सिंचाई से संबंधित समस्याएं बनी रहने लगी। इसके साथ ही भूमिगत जल स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। खेती पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा और ग्रामीणों को जीवन निर्वाह के लिए उदयपुर एवं अन्य क्षेत्रों में जाकर मजदूरी करना मजबूरी हो गया था।
बांध से आएगी बरकत
इस काम को गति दी मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान ने। इस अभियान ने बाँध की जल भराव क्षमता को बढ़ाने के लिए सामूहिक श्रमदान को मूर्त रूप दिया। इसके बाद से तस्वीर बदलने लगी है। बारा बाँध से आस-पास के लोगों में सिंचाई के लिए पानी दिया जाता रहा है। इसके लिए ९०० मीटर नहर बनी है जिसमें से ६०० मीटर पक्की नहर है जबकि ३०० मीटर क्षेत्र में बनी कच्ची नहर को पक्का करने का काम फसल कटने के बाद होना है। इसमें प्यासे खेतों तक पानी पहुंचाने की कार्ययोजना बनाई गई है।
श्रमदान से निखरा जल भण्डार
मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना में पुलिस, प्रशासन एवं ग्रामीणों के सहयोग से सामूहिक श्रमदान की बदौलत बाँध से गाद (जमा मिट्टी) हटने लगी है, यह और अधिक गहरा होने लगा हैै। इसमें पानी का भराव अधिक होने लगेगा। इससे सिंचाई सुविधाओं में विस्तार होगा। इसके साथ ही इस जलाशय की रिटेनिंग वॉल का काम भी हो सकेगा जिससे कि खेतों के किनारों का क्षरण रुक सकेगा।
ग्रामीणों को मिलेगा फायदा
इसके साथ ही महात्मा गांधी नरेगा योजना में नहर निर्माण एवं बांध सुदृढ़ीकरण का कार्य हरित धारा में शुरू करवाया गया। यह बांध अब नया जीवन पाने लगा है। अबकी बार बरसात इस बांध के लिए कुछ खास होगी। इस बांध के पुनर्जीवित हो जाने से यह पहले की तरह अपनी ५५०० क्यूबिक फीट भराव क्षमता तो पा ही लेगा, ५०० क्यूबिक फीट की अतिरिक्त भराव क्षमता भी पा लेगा। इसके साथ ही पूरे जनजाति क्षेत्र में लगभग ९० बीघा जमीन में सिंचाई सुविधा से काश्तकार लाभान्वित होंगे। ग्रामीण पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
आदिवासी काश्तकारों में हर्ष
बारा गांव व आस-पास के सभी लोग इस काम से खुश हैं। जनजाति परिवारों के बुजुर्ग हवजी भाई, शिवलाल सालवी, बद्रीलाल, मोहन, तेजाराम आदि कहते हैं कि इससे पानी की सुविधा का लाभ सभी को मिलेगा, बोरी एवं पडूना नदी का पानी साल भर इसमें जमा रहेगा जिससे नहाने-धोने के साथ ही पास ही अवस्थित श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार में आने वाले ग्रामीणों को स्नान की सुविधा भी प्राप्त होगी।
जनभागीदारी रच रही इतिहास
जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री अविचल चतुर्वेदी बताते हैं कि उदयपुर जिले में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में श्रमदान के साथ ही संसाधनों एवं राशि के रूप में व्यापक जन भागीदारी प्राप्त हो रही है। मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान ने उदयपुर जिले में इस तरह के कई बांधों और जलाशयों की कायपलट का दौर परवान पर है।