रिपोर्ट - प्रदीप कुमार सैनी
जीणमाता/दांतारामगढ़ । जीण माता मंदिर सीकर जिले की अरावली पहाडय़िों पर स्थित है। जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। माता को दुर्गा का अवतार माना जाता है। लोककथाओं और कविताओं के माध्यम से जीण माता के बारे में कई तरह की जानकारी मिलती है। लोककथाओं के अनुसार राजस्थान के चूरू जिले के घांघू गांव में चौहान वंश में राजपूत के घर जीण माता का जन्म हुआ।

हर्ष को इस तकरार के बारे में पता नहीं था। पानी लेकर जब दोनों घर आईं तो हर्ष ने पहले अपनी पत्नी का मटका उतार दिया। इससे जीण को बहुत ठेस पहुंची। अपने प्रति भाई का प्रेम कम समझकर वह घर से निकल पड़ी। जब हर्ष को समझ में आया तो वह बहन को मनाने के लिए उसके पीछे चल पड़ा। जीण ने घर से निकलने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और अरावली के एक शिखर पर जा पहुंची। इसे काजल शिखर कहा जाता है। हर्ष बहन को मनाने वहां भी पहुंच गया।
अपनी भूल के लिए बहन से क्षमा-याचना की और वापस घर चलने का आग्रह किया। जब जीण ने हर्ष की बात नहीं मानी तो हर्ष भी घर नहीं लौटा और दूसरे पहाड़ की चोटी पर भैरव की साधना करने लगा। कालांतर में यह चोटी 'हर्षनाथ पहाड़Ó नाम से प्रसिद्ध हुई।
वहीं रहकर जीण ने नवदुर्गा माताओं की कठोर तपस्या की और सिद्धि के बल पर दुर्गा बन गई। हर्ष भी भैरव की साधना कर हर्षनाथ भैरव बन गया। इस प्रकार यह स्थान जीण और हर्ष की कठोर तपस्या के बल पर आस्था का केंद्र बन गया। इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। आज भी श्रद्धालु इनकी पूजा करने के लिए देश के कोने- कोने से पहुंचते हैं।
जीण माता का मंदिर दक्षिणमुखी है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व में है। जीण का मंदिर प्राचीन शक्तिपीठ है जिसका निर्माण मजबूत और बड़े सुंदर ढंग से हुआ ह। मंदिर की दीवारों पर अनेक तांत्रिकों की मूर्तियां लगी हैं जिससे सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में यह स्थान तांत्रिकों की साधना स्थली भी रहा है। मंदिर के अंदर अष्टभुजाओं वाली आदमकद जीण माता भगवती की मूर्ति प्रतिष्ठापित है।
मंदिर के नीचे एक और मंदिर है जिसे गुफा कहा जाता है जहां कंकाली माता का मंदिर है। जीण माता मंदिर में चैत्र नवरात्रि में विशाल मेला लगता है जिनमें देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं. मंदिर में देवी को शराब चढ़ाई जाती है परंतु यहां पशुबलि वर्जित है। भगवान हर्षनाथ का भव्य मंदिर आज भी राजस्थान के अरावली पर्वतमाला में स्थित है।
कहते हैं एक बार बादशाह औरंगजेब ने हर्ष पर्वत पर आक्रमण किया और यहां मौजूद मंदिरों, गुफाओं और अनेक भवनों को ढहा दिया। इसके बाद शत्रु सेना माता के मंदिर की ओर मुड़ी। माता ने मधुमक्खियों से बादशाह की पूरी सेना पर हमला करवा दिया।
मधुमक्खियों के बुरी तरह काटने से बेहाल पूरी सेना घोड़ों सहित मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। तब औरंगजेब ने हारकर माता के चरणों में अपना मस्तक नवा कर क्षमा-याचना की। माता की शक्ति का अहसास कर बादशाह ने मंदिर को सोने से निर्मित मूर्ति भेंट की और अखंड ज्योति जलार्ई आज भी जीण मंदिर में अखंड ज्योति जल रही हैं l