अभावों से जूझ रही दो बहनों ने लहराया बदलाव का परचम
राजसमंद - पिता का साया सर से उठ गया। कैंसर से ग्रस्त विधवा माँ का उदयपुर और अहमदाबाद में ईलाज चल रहा है। परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है इस वजह से दोनों बहनें मिलकर सिलाई का काम करती हैं और उसी से जैसे-तैसे घर चल पाता है। जीवन से संघर्ष और अभावों के साये में जैसे-तैसे जिन्दगी गुजर रही है। नियति ने इस परिवार पर ऎसा कहर ढाया है कि समस्याओं और परेशानियों की कल्न्पना भी नहीं की जा सकती।
जीवन के यथार्थ से रूबरू कराने वाली यह मार्मिक कहानी है राजसमन्द जिले की रेलमगरा पंचायत समिति के छोटे से गांव बामनटुकड़ा की, जहाँ की दो लड़कियों से सारे अभावों और पीड़ाओं के बावजूद ऎसा कुछ कर दिखा रही हैं कि इसने यह सिद्ध कर दिया है कि परिस्थितियां चाहे कितनी ही विकट क्यों न हों, हौंसलों बूते आसमान की उड़ान पायी जा सकती है।
कोमल हाथों ने रखी ठोस बुनियाद
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर चल रहे स्वच्छ भारत मिशन में भागीदार बनी इन दोनों बहनों ने अपने घर में शौचालय बनवा लिया और गुणवत्ता युक्त काम सुनिश्चित करने और धन की मितव्ययता की दृष्टि से इन दोनों ने शौचालय निर्माण के लिए कारीगर के काम मेंं हाथ बँटाया। इसके लिए उन्होंने अपनी बचत के पैसों का उपयोग किया और शौचालय निर्माण करा दिया। नियति की निर्ममता भर क्रूर कहानी की पात्र मासूमियत से भरी राधा और सीता बताती हैं कि दूर बाहर खुले में शौच जाने में शर्म आती थी और इसीलिए उन्होंने तय कर लिया कि खुले में शौच नहीं जाएंगी, इसलिए जल्द से जल्द अपने घर में शौचालय बनाने का प्रण किया और पूरी मेहनत करते हुए शौचालय बना डाला। घर में ही शौचालय बन जाने से अब उनकी कई समस्याएं दूर हो गई हैं। बेटियों और माँ के साथ घर आने वाले मेहमानों के लिए भी यह शौचालय उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
राजसमंद - पिता का साया सर से उठ गया। कैंसर से ग्रस्त विधवा माँ का उदयपुर और अहमदाबाद में ईलाज चल रहा है। परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है इस वजह से दोनों बहनें मिलकर सिलाई का काम करती हैं और उसी से जैसे-तैसे घर चल पाता है। जीवन से संघर्ष और अभावों के साये में जैसे-तैसे जिन्दगी गुजर रही है। नियति ने इस परिवार पर ऎसा कहर ढाया है कि समस्याओं और परेशानियों की कल्न्पना भी नहीं की जा सकती।
जीवन के यथार्थ से रूबरू कराने वाली यह मार्मिक कहानी है राजसमन्द जिले की रेलमगरा पंचायत समिति के छोटे से गांव बामनटुकड़ा की, जहाँ की दो लड़कियों से सारे अभावों और पीड़ाओं के बावजूद ऎसा कुछ कर दिखा रही हैं कि इसने यह सिद्ध कर दिया है कि परिस्थितियां चाहे कितनी ही विकट क्यों न हों, हौंसलों बूते आसमान की उड़ान पायी जा सकती है।
कोमल हाथों ने रखी ठोस बुनियाद
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर चल रहे स्वच्छ भारत मिशन में भागीदार बनी इन दोनों बहनों ने अपने घर में शौचालय बनवा लिया और गुणवत्ता युक्त काम सुनिश्चित करने और धन की मितव्ययता की दृष्टि से इन दोनों ने शौचालय निर्माण के लिए कारीगर के काम मेंं हाथ बँटाया। इसके लिए उन्होंने अपनी बचत के पैसों का उपयोग किया और शौचालय निर्माण करा दिया। नियति की निर्ममता भर क्रूर कहानी की पात्र मासूमियत से भरी राधा और सीता बताती हैं कि दूर बाहर खुले में शौच जाने में शर्म आती थी और इसीलिए उन्होंने तय कर लिया कि खुले में शौच नहीं जाएंगी, इसलिए जल्द से जल्द अपने घर में शौचालय बनाने का प्रण किया और पूरी मेहनत करते हुए शौचालय बना डाला। घर में ही शौचालय बन जाने से अब उनकी कई समस्याएं दूर हो गई हैं। बेटियों और माँ के साथ घर आने वाले मेहमानों के लिए भी यह शौचालय उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
मनीष की समझाईश ने दिया आकार
दोनों बहनें बताती हैं कि वे लम्बे अर्से से सोच रही थीं कि उनके घर में कब शौचालय बने ताकि बाहर जाने की झंझटों और इससे जुड़ी ढेरों समस्याओं से मुक्ति प्राप्त हो सके। इसी बीच मनीष भैया की समझाईश पर उन्हें अच्छा लगा और उन्होंने उनसे प्रेरणा पाकर ठान ली कि अपने घर में भी शौचालय होगा ही होगा। यह मनीष भैया वही शख्स हैं जिनका पूरा नाम मनीष दवे है और वे राजसमन्द जिले में स्वच्छ भारत मिशन में तन-मन-धन ने दिन-रात जुटे हुए हैं। घर-घर शौचालयों के निर्माण और ग्राम पंचायतों को ओडीएफ बनाने की धुन के पक्के मनीष दवे ने मानदेय भी ठुकराया और अपने मिशन में लगे हुए हैं। उनके इस समर्पित कर्मयोग को देखते हुए जिला प्रशासन ने गणतंत्र दिवस पर जिलास्तरीय सम्मान से नवाजा भी है। आज मनीष दवे राजसमन्द जिले में सेनिटेशन चैम्पियन के रूप में मशहूर हैं।
मार्मिक है करुण कहानी
राधा और सीता के परिवार की मार्मिक कहानी सुनकर भावुक हुए बिना नहीं रहा जा सकता। 26 वर्षीय सीता प्रजापत और उनकी छोटी बहन 22 वर्षीय राधा प्रजापत ने करुण स्वरों में अत्यन्त भावुक होते हुए बताया कि उनके घर में कुल जमा तीन लोग हैं। नियति की बेरहमी देखियें कि करीब 22 वर्ष पूर्व राधा गर्भ में थी उसी वक्त पिता श्री उदयलाल प्रजापत की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। राधा को पिता का चेहरा तक देखना नसीब नहीं हुआ। पिता की मौत के चार माह बाद राधा का जन्म हुआ। पिता की असामयिक मृत्यु के वज्रपात के साथ ही पूरे परिवार पर संकट के बादल मण्डराने लगे। ऎसे में माँ श्रीमती गंगा देवी ने खेती-बाड़ी और मेहनत-मजदूरी कर अपनी दोनों बच्चियों को पाल पोसकर बड़ा किया। घर की जिम्मेदारियों के कारण सीता पाँचवी से आगे नहीं पढ़ पाई लेकिन उसने अपनी छोटी बहन राधा की पढ़ाई में खूब मदद की और चाहा कि उसकी कमी राधा पूरी कर दे और आगे पढ़-लिखकर काबिल हो जाए।
थमा नहीं संघर्ष का सफर
इस परिवार की करुण कहानी का अंत यहीं नहीं हुआ बल्कि सीता की बचपन में ही शादी अमरतिया गांव में कर दी गई लेकिन पति के खराब व्यवहार को देखकर बाद में संबंध विच्छेद कर दिए। इसके बाद से सीता पीहर में ही है। छोटी बहन राधा स्वयंपाठी के रूप में हिन्दी में एम.ए. कर रही है।
माँ की सेवा
राधा की शादी पुनावली में हुई है और उसके पति मुम्बई में काम-धंधे में लगे हुए हैं। सीता और राधा की माँ गंगादेवी को कैंसर की बीमारी है और उनका उदयपुर तथा अहमदाबाद में ईलाज चल रहा है। माँ की सेवा का ज़ज़्बा रखने वाली सीता और राधा पीहर में रहकर सिलाई का काम कर घर चला रही हैं। राजसमन्द जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर बामनटुकड़ा गांव और आस-पास के गांवों के लोगों के परिधान सिलने वाली बहनों सीता और राधा की पूरे इलाके में खूब इज्जत है। इनकी माँ गंगादेवी को विधवा पेंशन मिल रही है जबकि परिवार को बीपीएल के फायदों से भी जोड़ा गया है। संघर्षों और अभावों के बीच पली-बड़ी सीता और राधा की जिन्दगी अपने आप में महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता के साथ स्वच्छता का अनुकरणीय संदेश भी संवहित कर रही हैं।