रिपोर्ट - जीतेन्द्र वर्मा
राजाओं के समय से चली आ रही है परंपरा
बूंदी।
त्योहारों पर अपने विशेष परंपरा के अनुसार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता
रहा है इसी तहत बूंदी में भी बड़ोदिया ग्राम अपने आयोजनों के लिए प्रसिद्ध
है। दिवाली के 2 दिन बाद भाई दूज के दिन यहां विशेष कार्यक्रम आयोजित किया
जाता है। जिसमें महीने भर से तैयारी में जुटा पूरा ग्राम भाग लेता है। जोश
और उमंग से भरपूर आयोजनों से दर्शकों को लुभाने और मनोरंजन करने का काम बड़ी
लगन के साथ किया जाता है। बूंदी से 10 किलोमीटर दूर ग्राम बड़ोदिया जादूगरी
के लिए प्रसिद्ध है यहा हैरतअंगेज कारनामों द्वारा दर्शकों को लुभाया जाता
है।घासभैरू की सवारी इनके लिए केवल एक परम्परा नहीं अपितु अपने गांव को एक
अलग पहचान दिलाने का भी जरीया है।घासभैरू की सवारी के आयोजन में न केवल
युवा अपितु बच्चे बूढ़े और महिलाएं भी अपना भरपूर सहयोग देते हैं गांव की
संस्कृति से परिचय करवाने वाला यह महोत्सव आज के समय में आधुनिकता से दूर
जाकर हमें हमारे वास्तविक धरातल से जोड़ता है।
महीने भर पहले से ही शुरु हो जाती है तैयारियां
विभिन्न झांकियों और स्वांग बनाकर करते हैं आगंतुकों का मनोरंजन
ग्राम
बडोदिया के ग्रामीण एक अनोखी परंपरा को निभाने के लिए महीने भर पूर्व से
ही तैयारियों में जुड़ जाते हैं गांव भर में घरों के बाहर जादूगरी से भरपूर
झांकियां बनाने का काम शुरू हो जाता है। बोतलों पर पत्थर को टिका कर उस पर
रखी मूर्ति में से पानी निकालने की झांकी हो या बिना बिजली के बल्ब जलाने
की झांकी। हवा में कच्चे धागे की सहायता से ईटो को लटकाना हो या जहरीला जीव
जंतु को पकड़ना। नंगे बदन कांटो पर लेटना हो या बिना किसी सहारे के कुए में
लटकना। कैसे हैरतअंगेज कारनामों से दर्शकों को आश्चर्यचकित कर यह ग्राम
प्रसिद्ध है। ग्रामवासी विभिन्न स्वांग बनाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं।
कोई शिकारी बन कर शिकार करने यहां वहां दौड़ता नजर आता है तो कोई अपनी
मोटरसाइकिल पर दो दो पत्नियों को बिठा कर घूमता। सिर पर आग जलाकर चाय बनाई
जाती है तो कहीं ग्राम वासियों का झुंड थालिया और ढोल बजा कर हिया हिया
आवाज निकालकर आदिवासियों की तरह नाचते नजर आते हैं। कुछ अजीबो गरीब कपड़े
पहन कर विदेशी पर्यटक का स्वांग बना कर घूमते हैं तो कोई फोटोग्राफर बन कर
लोगों को हंसाने का काम करता है। पूरे ग्रामवासी विभिन्न तरीकों से लोगों
का मनोरंजन करने का काम करते हैं। गांव के प्रवेश हाथी गजा से लेकर गांव के
अंतिम छोर ने बने काला बाबा के मंदिर तक पूरा गांव एक रंगमंच बन जाता है
जहां घूम घूम कर आने वाले दर्शक भी इस कार्यक्रम का भाग बनते हैं पूरे
बाजार की छतों पर दर्शक दीर्घा दिनभर इन कार्यक्रमों का लुफ्त उठाते नजर
आते हैं गांव से बाहर रहने वाले लोग भी आज के दिन गांव के इन कार्यक्रमों
में शरीक होने आते हैं। ना केवल बूंदी शहर बल्कि आस पास के शहरों और बुद्धि
में आने वाले विदेशी पर्यटक भी कार्यक्रम को देखने बड़ोदिया गांव आते हैं।
बरसों से चली आ रही है परंपरा
सारे गांव वाले मिलकर निकालते हैं आज भेरु की सवारी
घास
भैरू निकालने की परंपरा राजस्थान में वर्षों से चली आ रही है। जब राजस्थान
में राजाओं का शासन था तब से गांव में खुशहाली और बीमारियों से रक्षा के
लिए घास भेरू की सवारी निकाली जाती थी। उसके लिए गांव में जगह जगह मंदिरों
के बाहर औषधी मेखला बांधी जाती थी। घास भेरू की सवारी जब इन मेखलाओं के
नीचे से गुजरती थी तो उसके पीछे सारे गांव के लोग भी गुजरते थ।े इन मेखलाओ
में विभिन्न जड़ी बूटियों और आयुर्वेदिक वृक्षों की पत्तियों को बांधा जाता
था। जिसके नीचे गुजारने से कई मौसमी रोग ठीक हो जाया करते थे। कहा जाता था
कि गांव के चारों ओर इस तरह कि मेखला बांधने से कोई भी महामारी गांव में
नहीं आती थी। घास भैरू एक बड़ा सा पत्थर का बना होता है जिसके ऊपर कामी पाठा
लगाया होता है। इसे लकड़ी के टुकड़ों पर सवार कर सारे गांव वाले अपने बेलों
के साथ इसे खींचते हुए गांव के एक छोर से दूसरे छोर पर ले जाते हैं। अगले
वर्ष उस छोर से पुनः इस छोर पर लाते हैं। गांव के बाहर घास भेरू की विशेष
पूजा अर्चना की जाती है सारे गांव वाले इस पर शराब चढ़ाते हैं माना जाता है
कि घास भैरू गांव की प्राकृतिक आपदाओं और महामारी से रक्षा करता है।
विभिन्न गावो में चली आ रही है यह परंपरा
बूंदी
के विभिन्न गांव में घांस भेरू की सवारी निकालने की परंपरा वर्षों से चली आ
रही है। लेकिन कुछ गांव इसे बड़े स्तर पर एक समारोह के रूप में मनाना
प्रारंभ कर दिया है। पहले केवल ग्राम बड़ोदिया में इस प्रकार का आयोजन होता
था। लेकिन अब ग्राम ठीकरदा, ग्राम सथूर, ग्राम बोरखंडी सहीत विभिन्न गांव
इसी प्रकार के आयोजन किए जाते हैं। जमीन के बाहर शरीर के अलग अलग हिस्से
बड़ी दूरी पर लगा कर लोगों को आश्चर्य में डालने वाले हैरतअंगेज कारनामों के
जरिए यह गांव भी दर्शकों के लिए कला का प्रदर्शन कर विशेष नाम कमा रहे
हैं।
संस्कृति और जादू का प्रदर्शन करते गांव
शहरी
संस्कृति में जहां जीवन बड़ा तेज होता जा रहा है वही ग्रामीण संस्कृति आज
भी आपस में मेल जोल भाईचारे को बढ़ाने में लगी हुई है इसका ज्वलंत उदाहरण
गांव में मनाए जाने वाला घास भेरू महोत्सव है। आज के दिन ना कोई छोटा होता
है ना कोई बड़ा। सभी ग्रामीण अपने सामर्थ्य के अनुसार कार्यक्रम में भाग
लेते हैं। बाहर से आए आगंतुकों का स्वागत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।
अपने जादुई कला को जीवंत करने का यह सुनहरा अवसर उनमें नए रंग भर देता है।
फिर दो पपीता पर दोनों पर टिका कर बाइक को खड़ा करना हो या पानी के ऊपर 24
स्क्वायर फीट के पत्थर को तेराना।
प्लास्टिक की
गुड़िया मैं बिना किसी माध्यम के पानी निकालना हो या बिना किसी माध्यम के
बिजली के बल्ब जलाना। जगह जगह पर मंच बनाकर फिल्मी गानों पर नृत्य कर
दर्शकों का मनोरंजन भी किया जाता है। प्रातः काल से ही सांय काल तक दर्शकों
का मेला लगा रहता है दूर-दूर से लोग गांव की संस्कृति और जादुई कला से
रूबरू होने यहां पहुंचते हैं।
देर शाम पूजा अर्चना कर
घास भेरू को एक छोर से दूसरे छोर ले जाया जाता है जिसमें गांव के सारे
बेलो को जोड़ जाता है। कभी सवारी आसानी से निकलती है तो कभी घास भेरू अड़
जाते हैं। फिर शुरू होता है मनाने का दौर घांस भेरू पर शराब और नारियल
चढ़ाकर जयकारों का उद्घोष कर घांस भेरू को मनाया जाता है। उसके बाद फिर घास
भैरव की सवारी आगे बढ़ने लगती है। जोश उमंग के साथ घास भैरू को दूसरे छोर पर
स्थापित कर कार्यक्रम का समापन होता है।
ग्राम दई में बुल फाइट जैसे दिखें नजारे
बूंदी
के नैनवा तहसील में स्थित देई कस्बे में शनिवार को बाबा घासभेरू की सवारी
निकली गई। सवारी की दौरान रोमांचक नजारो ने देखने वालों को रोमांच से भर
दिया। तड़के से समय बाबा घासभेरू की पूजा अर्चना कर सवारी शुरू हुई। जो
कस्बे के मुख्य मार्गो से होते हुए वापस अपने स्थानक पर पहुँची।
इस
दौरान लोगो मे अपने रंग बिरंगे बैलो की जोड़ियो को जोतने की होड़ मची रही।
वही युवाओ में बैलो की जुडिया दबाने के लिए कश्मकश चलती रही। कई स्थानों पर
बाबा के मचलने पर मदिरा का भोग लगाकर बाबा को मनाया गया।
पटाखो
की आवाज से बिदकते मदमस्त बैलो द्वारा लोगो की भीड़ को तीतर बितर करने के
नजारो ओ जुड़ी दबाने वालो के गिरने पड़ने के नजारो से सवारी में जगह जगह
रोमांचक नजारे बनते रहे।
वही
नवजात बच्चों को रोग निवारण के लिए जुड़ी के नीचे से निकला गया। मान्यता के
अनुसार बाबा की सवारी निकलने के बाद गाँव के सभी रोग दोष दूर हो जाते है।
वही जितने काम समय में घासभेरू वापस अपने स्थानक पर पहुँचता है उतना ही
क्षेष्ठ रहता है।
इससे पूर्व एक दिन पहले रात्रि को
चारभुजा चौक में बैल पूजन के बाद आठ सौ घरो के पंच पटेल की खनकडा में बैठक
आयोजित हुई। और बाबा की सवारी के लिए पूजन सामग्री व जुड़ी,बैल लेकर बाबा के
स्थानक पर पहुँचे।
सवारी देखने के लिए
कोटा,बूंदी,गुजरात,जयपुर,सवाई माधोपुर,टोंक,नैनवा,करवर,तलवास सहित आसपास के
ग्रामीण क्षेत्रो से बड़ी संख्यां मे लोगो ने भाग लिया।