खबर - राजकुमार चोटिया
सुजानगढ़- शहर में क्रिकेट सट्टे का कारोबार दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है और पुलिस है कि हाथ पर हाथ धरे बैठी मूक दर्शक बने हुए है। युवा, गरीब और बेरोजगार बर्बाद हो रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार किनारे बैठ कर इस अवैद्य धंधे के दलदल में लोगों को डूबते हुए देख कर भी अपनी आंखें बंद किये हुए पता नहीं कौनसे सुनहरे सपनों में खोये हुए हैं। पुलिस प्रशासन की उदासीनता का ही परिणाम है कि सुजानगढ़ आज बाहरी सटोरियों की शरण स्थली बना हुआ है। शहर से बाहर के सटोरियें यहां पर बेखौफ होकर अपना काम कर रहे हैं। सटोरियों पर कार्यवाही नहीं होने से पुलिस के प्रति शहर में विभिन्न प्रकार की चर्चाओं का बाजार गर्म है, जिन्हे किसी भी प्रकार से सही नहीं कहा जा सकता है। बर्बाद होती युवा पीढ़ी और मूक एवं मौन जिम्मेदारों की यह उदासीनता समाज को किस चौराहे पर ले जाकर खड़ा करेगी, यह भविष्य के गर्भ में है। जहां पुलिस का काम अपराधी को पकडऩे के साथ-साथ अपराध की जड़ को समाप्त करना भी है, वहीं पुलिस का सट्टे कारोबार की ओर से मुंह मोड़े रखना कितना उचित है, इसे लेकर आम जन में तरह तरह की चर्चाऐं हो रही है। क्रिकेट के सट्टे के कारण गरीब एवं साधारण परिवारों में पैसों की तंगी एवं युवाओं की इस लत के बीच की खींचतान को स्पष्ट देखा एवं अनुभव किया जा सकता है। लेकिन जिम्मेदारों को इससे क्या, किसी के घर चुल्हा जले ना जले अथवा झगड़े हो, पर आईपीएल क्रिकेट का सट्टा चलना उनके लिए शायद ज्यादा जरूरी है। शायद यही कारण है कि शहर में आधा दर्जन नामी सटोरियों के साथ-साथ पचास से अधिक छोटे-छोटे सटोरिये अपनी ढ़पली-अपना राग की तर्ज पर सट्टे के कारोबार को अंजाम दे रहे हैं तथा बाहरी सटोरियों को पनाह दिये हुए हैं। सट्टे के कारोबार से किसका कितना हित सिद्ध हो रहा है, ये तो राम ही जाने, परन्तु गरीब एवं साधारण परिवार के साथ -साथ अमीर घरों के युवा भी बर्बादी की इस राह पर कदम बढ़ाये चले जा रहे हैं और जिम्मेदार गांधारी के समान आंखों पर पट्टी बांधे धृतराष्ट्र बने हुए हैं।
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