भाजपा के एक वर्ष के शासन में ऐसी कोई खास उपलब्धि नहीं थी जैसे उपचुनाव के नतीजे आए हैं. सच तो यह है कि पहले टिकट वितरण में कांग्रेस ने निपटने की तैयारी कर ली थी. चुनाव प्रचार के दौरान कहीं भी कांग्रेस आक्रामक मूढ में नहीं थी. जबकि दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल भाजपा पूरे लावोलश्कर के साथ चुनाव क्षेत्र में ताबड़तोड़ हमले करती रही.कांग्रेस ने तो मानो हथियार डाल रखे थे. साफगोई अंदाज में कहे तो विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस पूरी तरह नाकारा साबित रही.
इन उपचुनावों को कांग्रेस ने अपनी प्रतिष्ठा की बजाय सांसदों की साख के नजरिए से ज्यादा देखा. दरअसल उपचुनाव पांच सीटों पर सांसद निर्वाचित होने पर हो रहे थे. जिनमे 3 कांग्रेस, एक-एक रालोपा और बाप पार्टी से सांसद बने थे.इनमें दौसा से कांग्रेस के सांसद मुरारी लाल मीणा की पार्टी प्रत्याशी डीडी बैरवा के चुनाव जीतने से इज्जत बरकरार रह गई. इस नतीजे में कांग्रेस के नेता सचिन पायलट का भी अहम रोल रहा. दूसरी ओर टोंक-सवाई माधोपुर के सांसद हरीश मीणा और झुंझुनू के सांसद बृजेंद्र ओला के देवली- उनियारा और झुंझुनू सीट के नतीजे विपरीत आने से उनकी साख को बट्टा लगा है.
सांसद निर्वाचित होकर दौसा के मीणा के अलावा बांसवाड़ा के सांसद राजकुमार जोत ने भी अपने निर्वाचन क्षेत्र चौरासी की सीट पर कब्जा बरकरार रखकर प्रतिष्ठा बनाए रखी है लेकिन सबसे बड़ा झटका इन उपचुनाव में नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल को लगा है. जो लाख प्रयास के उपरांत अपनी भी परम्परागत सीट को बचा नहीं पाये.यहां से उनकी धर्मपत्नी कनिष्का बेनीवाल हारना काफी मायने रखता है. खींवसर में कमल का खिलना और राजस्थान विधानसभा में रालोपा का सफाया होना, हनुमान की सियासी पारी में हरदम टीस देने वाला रहेगा. झुंझुनू के सांसद बृजेंद्र ओला को भी अपने सुपुत्र अमित ओला को विधानसभा ना भेजने का मलाल रहेगा
बहरहाल अब राजस्थान की राजनीति में कई समीकरण बनेंगे बिगड़ने. राजनीतिक दलों में उथल-पुथल होने के साथ-साथ राजनेताओं में आपस में एक-दूसरे पर गहरे व्यंग्य बाण चलेंगे. जोड़-तोड़ की नई गणित बैठाने के साथ जातीय समीकरण उलझेगे और सुलझेंगे. कुल मिलाकर उपचुनाव के नतीजों ने यह सिद्ध कर दिया है न तो परिवारवाद चलेगा और नहीं बड़बोलेपन.हां जिनकी साजिश सफल हुई है वह जरूर अंदर ही अंदर खुश हो सकते हैं.
नतीजों की मार से विपक्ष घायल जरूर है लेकिन भाजपा को भी इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि उनकी सरकार के कामकाज से बाजी मारी है. सच्चाई तो यह है,हार की पटकथा तो कांग्रेस ने टिकट वितरण के समय ही लिख दी थी.