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शायर नूर बीकानेरी का सम्मान

बीकानेर (जयनारायण बिस्सा)। सांझी विरासत बीकानेर के तत्त्वावधान में रविवार को ‘तोहफा-ए-नूर’ के लोकप्रिय बुजुर्ग शायर नूर बीकानेरी का सम्मान कोरियों के बास में उनके निवास पर अभिनंदन-वंदन और सम्मान किया गया। मुख्य अतिथि उर्दू के प्रख्यात शायर शमीम बीकानेरी तथा अध्यक्षता वरिष्ठ व्यंग्यकार-कहानीकार बुलाकी शर्मा ने की। इस अवसर पर अतिथियों एवं सांझी विरासत के ट्रस्टियों द्वारा नूर बीकानेर की दीर्घकालीन साधना पर अभिनंदन के रूप में उन्हें प्रशस्ति पत्र, श्रीफल, शाल तथा माल्यार्पण आदि द्वार सांझी विरासत सम्मानित अर्पित किया।
    समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात शायर शमीम बीकानेरी ने कहा कि नूर बीकानेरी श्रुति परंपरा के राजस्थानी कवि-शायर हैं, आपकी स्मृति और लोक रंग के साथ इबादत बेमिशाल है। उन्होंने नूर बीकानेरी के शब्दों- थारी निजर उतार लूं खम्मा घणी सरकार।/ सोभा देवै हाथ में हैदर री तलावार। और थारी बाडाई म्हैं करां कांई म्हारी औकात। / थारी बडाई रब करै दिन देखै ना रात। के द्वारा अपनी बात पुखता करते हुए कहा कि बीकानेर के प्रख्यात शायर मस्तान की शायरी परंपरा में उर्दू अदब और इस परिवेश को राजस्थानी में अभिव्यक्त करना उल्लेखनीय कार्य है।
    समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ व्यंग्यकार-कहानीकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि जनाब नूर बीकानेरी की सीधी-सरल-सहज भाषा मन को छू लेती है। किसी किताब को पढऩा और शायर को सुनना दो अलग अलग बातें हैं और दोनों का अपना आनंद है। आपकी शायरी में खुदा रा नूर है  तो जो जन-जन की भाषा में होने से सुनने वाले मुरीद हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि नूर बीकानेरी जैसे शायर को मोईनूदीन कोहरी और जाकिर अदीब ने ‘तोहफा-ए-नूर’ के माध्यम से परिचित करा ऐतिहासिक कार्य किया है। शर्मा ने कहा कि इनके रग रग में शायरी बसी है और इनकी नई किताब जल्द आनी चाहिए। 
    संयोजक कवि-कहानीकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि नूर साहब ने किसी स्कूल में जाकर किताबी शिक्षा ग्रहण नहीं की फिर भी जीवन की किताबे के पन्ने अपनी शायरी में ऐसे समझे समझाए हैं कि सुनने वाले दंग रह जाते हैं। हम अपने परिवार के वरिष्ठ शायर का सम्मान असल में हम सब का अपना सम्मान है।
    इस अवसर पर कवि आलोचक डॉ. नीरज दइया ने बोलते हुए साझी विरासत की यात्रा के विविध पड़ावों का परिचय देते हुए कहा कि इस सम्मान में सर्वाधिक उल्लेखनीय बीकानेर के साहित्यिक समाज की जो परस्पर आत्मीयता है जिसके कारण वे अपनी परंपरा और बुजुर्ग साहित्यकारों के अवदान से परिचित हो सकेंगे। 
    शायर जाकिर अदीब ने नूर बीकानेर की किताब पर चर्चा करते हुए कहा कि इनके कलाम की लोकप्रियता को किताब में ढालते हुए शाब्दिक विन्यान और शायरी का वजन भी बरकार रहता है। कवि-कहानीकार नवनीत पाण्डे ने कहा कि संभवत: बीकानेर ही ऐसा शहर है जहां साझी विरासत जैसी संस्था से यह परंपरा जीवित हुई है कि हम अपनी पीढी से पहले के रचनाकारों को उनके घर जाकर जाने पहने और मिल बैठकर सुने सुनाएं।
    साहित्यकार मोईनूदीन कोहरी ने कहा कि नूर साहब एक नेक दिल इंसान और खुदा के सच्चे बंदे है। उनकी शायरी खुदा की रहमत है। लेखक नदीम अहमद ‘नदीम’ ने अनेक संस्मरण साझा करते हुए कहा कि नूर बीकानेरी जैसे रचनाकार का सम्मान करना अपने आप में उल्लेखनीय इस रूप में है कि इसके माध्यम से संस्कारों का विकास होगा। शायर वली गौरी ने साझी विरासत के अवदान को उल्लेखनीय बताते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों की निरंतरता से ही साहित्य और समाज का सही मायनों में जुड़ाव हो सकेगा।
    कार्यक्रम में साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार, इसरार हसन कादरी, लियाकत अली, भंवर खां, साविर खां, फिरोज खां, कासिम बीकानेरी आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।