खबर - पवन शर्मा
सूरजगढ़ ।
भारतीय संस्कृति की पहचान शास्त्रीय संगीत है या दूसरे शब्दों में कहे तो
शास्त्रीय संगीत भारतीय संस्कृति की कलां व धरोहर है, इस कलां को जीवंत
रखना हर भारतीय की जिम्मेदारी है उक्त कथन शाम चौरासी घराने मैनपुरी के
सलामत अली के शिष्य व गायक कलाकार प्रेमचंद कुशवाहा ने कस्बे के ब्राह्मण
सभा भवन में क्षेत्रीय तबला वादक और सरकारी स्कूल के अध्यापक प्रभाकर
मिश्रा के सयोंजन में आयोजित हुई शास्त्रीय संगीत संध्या के दौरान व्यक्त
किये। उस्ताद प्रेमचंद ने बताया की वर्तमान में भारतीय युवा प्राचीन संगीत
की इस महान धरोहर को छोड़कर पाश्चात्य संस्कृति की तरफ अधिक रुझान करने
लगे है जिसके कारण इस कलां पर संकट खड़ा दिखाई देने लगा है ऐसे में इस
शास्त्रीय संगीत की परंपरा को बचाये रखने के लिए हम सबको सामूहिक प्रयास
करने होंगे। संगीत संध्या में गायक प्रेमचंद के साथ साथ तबले पर यूपी के
अजरावा क्षेत्र के अजराड़ा घराने के उस्ताद हासिम अली के शिष्य मुन्नवर खान
,सांरगी पर कैराना घराने के मुद्दसर खान , सितार पर दिल्ली के शाहिद परवेज
के शिष्य इस्माईल खान ने अपने अपने वाढ यंत्रो के साथ अपनी कलां की छटां
बिखेरते हुए रात भर तक श्रोताओं को अपने संगीत की रस गंगा में डुबाये रखा।
इस मौके पर सीताराम शर्मा ,महेश जांगिड़ ,शशिकांत जांगिड़ ,रामगोपाल दाधीच
,हनुमान दाधीच ,शुशील शर्मा ,नवीन सोनी ,शशिकांत शर्मा ,अनूप सुल्तानिया
,अनूप शर्मा ,सुरेंद्र शर्मा ,सुधीर जांगिड़ ,विष्णु शर्मा , महेश चौधरी
,रवि शर्मा ,प्रशांत चौमाल सहित अन्य संगीत प्रेमी मौजूद थे।