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31 अप्रैल तक सभी औषधि विक्रेता अपने लाइसेंस ऑनलाइन करवा ले

खबर - जयंत खांखरा 
खेतड़ी -प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिजिटल इंडिया योजना के अंतर्गत पूरे भारत में हर विभाग का डिजिटलाइजेशन किया जा रहा है इसी कड़ी में सोमवार को खंड मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में जिला टी बी अधिकारी महेंद्र नागर, जिला औषधि नियंत्रण अधिकारी नरोत्तम देव बारोठिया,डिस्ट्रिक्ट पीपीएम कोर्डिनेटर  मोहन लाल ने रमेश सैनी, किशोर शर्मा,  निशाकर दादरवाल, राकेश पारीक,  प्रेम प्रकाश गुर्जर,  सिकंदर कुमावत,  प्रमोद सैनी ,प्रवीण कुमार,  मुरलीधर सैनी सहित खेतड़ी क्षेत्र के सभी प्राइवेट औषधि विक्रेताओं की बैठक बुलाकर कार्यशाला का आयोजन किया गया । जिला औषधि अधिकारी ने बताया कि डिजिटल इंडिया के तहत अब औषधि विक्रेताओं के ड्रग लाइसेंस ऑनलाइन करने की प्रक्रिया का आरंभ हो गया है 31 अप्रैल तक सभी औषधि विक्रेता अपने लाइसेंस ऑनलाइन करवा ले क्योंकि लाइसेंस प्रक्रिया ऑनलाइन होने से प्रक्रिया में पारदर्शिता और सरलीकरण होगा। नए लाइसेंस बनवाने में ऑनलाइन प्रक्रिया के चलते कार्य सुगम सरल और पारदर्शी होंगे।  दवा विक्रेता का रिकॉर्ड भी सही तरीके से समायोजित होगा और यह प्रक्रिया वास्तव में प्रभावकारी है।  इससे बिना लाइसेंस के बेच रहे औषधि विक्रेताओं का फर्जीवाड़ा भी रुकेगा और अंकुश भी लगेगा। वही जिला टी बी अधिकारी ने सभी केमिस्टों को जानकारी दी कि भारत सरकार ने टीबी औषधियों के प्रभावी नियंत्रण के लिए एवं क्षय रोग का पूर्ण उपचार एवं रोकथाम करने के लिए अब दवा विक्रेताओं को भी आगे आना पड़ेगा दवा विक्रेता टीबी की दवा देते समय मरीज का पूरा रिकॉर्ड रखें और उनके आधार कार्ड की पूरी जानकारी लेकर चिकित्सा विभाग को सूचित करें जिससे सही मॉनिटरिंग हो सके और टीबी रोग को जड़ से खत्म किया जा सके क्योंकि सरकार का 2025 तक लक्ष्य है कि टीबी रोग को खत्म किया जाए। इसमें सभी की भागीदारी जरूरी है दवा विक्रेताओं की इसमें मुख्य भूमिका है। इसी के साथ टीबी अधिकारी ने क्षय रोग के बारे में केमिस्टों को जानकारी देते हुए बताया कि अब प्राइवेट डॉक्टरों को भी टीबी रोगियों को चिन्हित कर उनका रिकॉर्ड रखना होगा राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार के इसमें विशेष दिशा निर्देश हैं रिकॉर्ड नहीं रखने की वजह से फॉलोअप मरीजों का पता नहीं लग पाता है और मरीज मल्टी ड्रग रेजिडेंस हो जाता है जिससे संक्रमण होने के अधिक चांस बढ़ जाते हैं और दूसरे अन्य रोगों के मरीज भी टीवी के रोग की चपेट में आ जाते हैं।