मंगलवार, 3 जुलाई 2018

बजरी के विकल्प के रूप मेंं अब एम-सैंड पर होगा जोर

जयपुर। नदी की बजरी की उपलब्धता में लगातार कमी और बढ़ती कीमतों के कारण आ रही समस्याओंं को ध्यान में रखकर अब प्रदेश में विनिर्मित बजरी (मैन्यूफैक्चर्ड सैंड) यानी एम-सैंड को बढ़ावा देने के लिए मंगलवार को हरिश्चन्द्र माथुर लोक प्रशासन संस्थान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल और खान व भूविज्ञान विभाग, द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यशाला में बताया गया कि अभी एम-सैंड की लागत नदी की बजरी से भी कम आती है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल की अध्यक्ष और खान व भूविज्ञान विभाग की प्रमुख शासन सचिव अपर्णा अरोरा ने कहा कि प्रदेश में खनिज की भारी प्रचूरता है और विभिन्न स्थानों पर 880 मिलियन टन खनिज का मलबा उपलब्ध है जिसका उपयोग एम-सैंड के उत्पादन में हो सकता है इससे न केवल बजरी की समस्या का हल होगा वरन मलबे के निष्पादन के करण उत्पन्न पर्यावरणीय प्रभावों को कम किया जा सकेगा। फिलहाल रिंग रोड और द्रव्यवती प्रोजेक्ट में एम-सैंड का इस्तेमाल सफलता पूर्वक किया जा रहा है। प्रदेश में एम-सैंड की अधिक से अधिक यूनिट स्थापित किये जाने की आवश्यकता है, इसके लिये जागरूकता बढाने एवं उद्योगों को इस दिशा में प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। पर्यावरण विभाग के सचिव राजेश कुमार ग्रोवर ने बताया कि एम-सैंड से मकान, पुल या किसी भी अन्य निर्माण में कोई कमजोरी नहीं आयेगी। नदी की बजरी के समान ही यह मजबूत होगा। कर्नाटक इसका उदाहरण है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सदस्य सचिव श्री केसीए अरूण प्रसाद ने कार्यशाला में अतिथियों का स्वागत किया। कर्नाटक के डिप्टी डाइरेक्टर  काशीनाथ कुलकर्णी ने बताया कि एम-सैंड की क्वालिटी नदी की बजरी से बेहतर है। गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए बड़ी संख्या में लेबोरेट्ररी स्थापित किये गये हैं। बीआईएस की संयुक्त निदेशक कणिका कालिया ने बताया कि एम-सैंड की गुणवत्ता बनाये रखने के उपाय कठिन नहीं है। द्रव्यवती नदी परियोजना के परियोजना निदेशक श्री कॉलिन बैचलर ने बताया कि द्रव्यवती नदी प्रोजेक्ट में एम-सैंड का इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया जा रहा है। खान विभाग के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर श्री एमएस पालीवाल ने बताया कि एम-सैंड प्रदूषण रहित है। प्रदेश में तकरीबन 2200 क्रशर लगे हुए है। अगर इन सभी क्रशन यूनिट्स को एम-सैंड से उत्पादन करने की इजाजत मिल जाये, तो प्रतिदिन 2 लाख टन का उत्पादन किया जा सकता है।

होंगे रॉ मैटेरियल- ग्रेनाइट, सैंड स्टोन बसाल्ट, क्वार्टजाइट, पेगमेटाइटिस, चारनोकाइटस, खोंडालाइट्स जैसे खनिजों से एम-सैंड का निर्माण होगा।

कैसी होगी गुणवत्ता- एम-सैंड की गुणवत्ता का पैमाना आईएम ः383ः2016 होगा। इसमें कोई भी हानिकारक तत्व नहीं होगा। यह सुनिश्चित किया जायेगा कि पाइराइट्स, कोल, लिग्नाइट, माइका, शेल, क्ले, एल्केली, सीशेल जैसे हानिकारक मैटेरियल एम-सैड में ना रहे। 

Share This