रविवार, 22 जुलाई 2018

पौथी यात्रा से शुरु हुआ ‘नानी बाई रो मायरो’

तपोभूमि लालीवाव मठ में भजनों पर झूमे भक्तजन
प्रतापगढ़ -तपोभूमि लालीवाव मठ में प्रतिवर्ष के भांति इस वर्ष भी गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत प.पू. महामण्डलेश्वर श्री हरिओमदासजी महाराज के सानिध्य में नानी बाई रो मायरों कथा का शुभारम्भ रविवार को पोथी यात्रा के साथ हुआ । लालीवाव मठ के प्रधान देवता पद्मनाभ मंदिर से पोथी यात्रा कथा पण्डाल तक पहुंची जहां आरती एवं भजनों के साथ कथा शुरु हुई । साध्वी जयमाला दीदी वैष्णव ने बताया की नानी बाई रो मायरो श्री कृष्ण भगवान के परम भक्त श्री नरसी मेहता की कथा है एवं यह कथा कृष्ण भगवान की भक्ति एवं विश्वास की अनोखी कथा है । नरसी मेहता ने सामान्य मनुष्य का जीवन जीते हुए भगवान को प्राप्त किया । भक्ति से प्रसन्न कर प्रभु दर्शन कर लिए । हम भी दृढ़ विश्वास व भक्ति से मनुष्य शरीर में रहते हुए भगवान के दर्शन कर सकते है । संचालक शांतिलालजी भावसार ने बताया कि पार्थिव शिवलिंग पूजा एवं रुद्राभिषेक पूजन श्री गोपालसिंह व श्री निमेश पाटीदार परिवार द्वारा किया गया । माल्यार्पण विश्वम्भरजी,योगेशजी वैष्णव, महेशजी राणा, सुखलाल सोलंकी, श्रीमती संतोष अग्रवाल, मिलोती, सुनीता विश्वास, विमल भट्ट आदि ने किया । 
राम धून लागी, गोपाल धून लागी भजनों पर झूमे श्रृदालु
कथा के बिच में जैसे ही जयमाल दीदी वैष्णव ने भजन राम धून लागी, गोपाल धून लागी गाया तो भक्तजन भक्ति में भाव विभोर होकर भक्ति के रंग में नांचने लगे । इसके साथ ही मीरा के प्रभु गिरधर नागर आदि भजन प्रस्तुत किए । 
बच्चों को शिक्षा व अच्छा संस्कार दें - साध्वी जयमाला दीदी वैष्णव
तपोभूमि लालीवाव मठ में जममाला दीदी ने नानी बाई रो मायरो कथा में पहले दिन कहा कि हमें अपने बच्चों को संस्कार और अच्छी शिक्षा अवश्य देना चाहिए । बच्चे शिक्षा तो प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन संस्कार भूल रहे हैं । संस्कारवान नई पीढ़ी ही अपने जीवन को सफल और सार्थक कर सकती है । लोक कल्याण ही परम धर्म है । इससे जीवन आनंदित होता है । सभी को आनंदित करना ही सच्चा धर्म है ।  
कथा में एकाग्रता, साधना व श्रद्धा जरुरी - महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज
तपोभूमि लालीवाव मठ में गुरुपूर्णिमा महामहोत्सव के तहत चल रही नानी बाई रो मायरो कथा के प्रथम दिवस में आशीर्वचन के रुप मे कहा कि वक्ता में 32 लक्षण होने जरुरी है । एक भागवत वक्ता में सभी भगवान स्वरुप दिखाई देना चाहिए । उन्होंने कहा जीवन के लक्ष्य को पाना बड़ा ही कठिन है । कथा के लिए एकाग्रता, साधना और श्रद्धा बेहद जरुरी है । लोक कल्याण के लिए अगर कोई व्यक्ति सेवा कर रहा हैं तो वह सत्कर्म भगवान की कृपा से ही संभव है । भगवान के नाम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान का नाम बंधन से मुक्त करता है । नाम का वर्णन करते हुए कहा कि दिल में स्मरण करने वाले लोगों का कल्याण भगवान अवश्य करते है । अगर भगवान की पूजा अर्चना करने का समय नहीं है तो सिर्फ भगवान का स्मरण कर भगवन नाम का जाप करते रहे इसी से भगवान प्रसन्न होते है ।
इसके पश्चात् व्यासपीठ एवं पार्थिव शिवजी की ओम जय शिव ओमकारा आरती उतारी गई । उसके पश्चात प्रसाद वितरण किया गया । संचालन शिक्षाविद् शांतिलालजी भावसार द्वारा किया गया ।

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