गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

पोदार काॅलेज में अन्तराष्ट्रीय स्तर का प्रथम बार हुआ शिकारी पक्षी पर व्याख्यानमाला का आयोजन

नवलगढ़:- दी आनन्दीलाल पोदार ट्रस्ट द्वारा संस्था पोदार काॅलेज के प्राणी शास्त्र विभाग के द्वारा डाॅ रामनाथ ए पोदार सभागार में साईबेरियन  एन्वायर मेन्ट सेन्टर रसियन रेपटर कन्जरवेसन नेटवर्क के द्वारा शिकारी  पक्षियों के सरंक्षण (रूस एवं कजाकिस्तान) तथा जैव वितरण एवं सरंक्षण के बारें में डाॅ इगोर केरिआकि, डाॅ एलिविरा निकाॅलनका तथा डाॅ ऐलिना के द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। 
कार्यक्रम का शुभारम्भ पोदार ट्रस्ट के निदेशक  (शैक्षिक एवं विकास) डाॅ वी एस शुक्ला, पोदार काॅलेज प्राचार्य डाॅ सत्येन्द्र सिंह, प्राणीशास्त्र  विज्ञान के विभागाध्यक्ष डाॅ दाउलाल बोहरा , डाॅ विकास बहादुर सक्सेना , प्रो रमा डिडवानियां, प्रो सरोज शर्मा , डाॅ राधेकांत शर्मा व समस्त व्याख्याताओं द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया । 
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डाॅ दाउलाल बोहरा द्वारा साउथ एशिया  तथा भारत व राजस्थान के परिपेक्ष में शिकारी  पक्षियों के प्रजनन स्थल प्रवस्न पथ तथा उनकी कम होती संख्या के बारे में स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को जानकारी प्रदान की। डाॅ बोहरा ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण में खाद्य श्रृंखला जाल में इन पक्षियों का बहुत महत्व है। रसियन रेपटर कन्जरवेसन नेटवर्क के हैड डाॅ इगोर केरिआकि ने शिकारी  पक्षियों सेकर फाल्कन, स्टेपी ईगल, इम्पिरियल ईगल, ग्रेटर स्पोटेड ईगल, वाईट टेल ईगल तथा ईगल आउल की पहचान तथा उनके विश्व  में उपस्थित संख्या, संरक्षण की स्थिति इत्यादि पहलुओं में प्रकाश  डाला। कार्यक्रम के दौरान 84 विद्यार्थियों  शौधारर्थियों ने बढ-चढकर भाग लिया। 
रूसी वैज्ञानिको द्वारा कजाकिस्तान, रूस का अल्ताई क्षैत्र, सायना क्षैत्र, मध्य मगोलिया में चल रही वैज्ञानिक शौध के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी सांझा की, इस अन्र्तराष्ट्रीय व्याख्यान में प्रवासी पंक्षियों की स्थिति एवं प्रवसन क्षैत्र को ज्ञात करने के लिए रंगीन छल्ले  (पैरो में) तथा जी.पी.एस. टेलीमीटर (सैटेलाइट) का प्रयोग करने की जानकारी दी। 
पोदार ट्रस्ट के चेयरमैन कांतिकुमार आर पोदार व ट्रस्टी सुश्री वेदिका पोदार ने इस व्याख्यानमाला के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। और कहा कि ऐसी व्याख्यानमालाओं के आयोजन से प्राणीशास्त्र  के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को बहुत लाभ होगा एवं प्राणी शास्त्र सम्बन्धी नवीन जानकारियों के लिए सहायक सिद्ध होगी।    


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