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पीपलोदी की पुकार: ना पुरानी सरकार बरी, ना नई सरकार निर्दोष




राजस्थान के झालावाड़ जिले के  पीपलोदी गांव में स्कूल की जर्जर बिल्डिंग गिरने से कुछ मासूम बच्चों की मौत और कुछ बच्चों के घायल होने की दर्दनाक घटना ने पूरे सरकारी सिस्टम की पोल खोल दी है। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही, प्रशासनिक उदासीनता और नेताओं की संवेदनहीनता का जीता-जागता सबूत है।

हर बार की तरह इस बार भी वही घिसी-पिटी प्रक्रिया दोहराई जाएगी — जांच कमेटी बैठेगी, फाइलें इधर-उधर होंगी, बयानबाजी होगी और कुछ दिनों बाद सबकुछ भुला दिया जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि इन मासूम जानों का जिम्मेदार कौन है? क्या सिर्फ सरकारें बदलना ही समाधान है या फिर सिस्टम की रीढ़ में सुधार करना जरूरी है?

राजस्थान की भाजपा सरकार को सत्ता में आए 20 महीने हो चुके हैं। उससे पहले कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन दोनों ही जवाब नहीं देगी आरोप ओर प्रत्यारोप जरूर हो सकते है लेकिन क्या सरकारी स्कूलों की हालत सुधारना प्राथमिकता है या सिर्फ चुनावी वादों की खानापूरी?

हर साल मानसून से पहले जिलों को निर्देश दिए जाते हैं कि स्कूल भवनों की जांच और मरम्मत कराई जाए। डीईओ (जिला शिक्षा अधिकारी) से लेकर कलक्टर तक रिपोर्ट मांगी जाती है। लेकिन क्या कभी इस पर सख्त निगरानी की गई? क्या इन निर्देशों को ज़मीनी हकीकत में बदलने का कोई सिस्टम तैयार किया गया?

अगर इन निर्देशों की सही निगरानी होती, तो पिपलोदी जैसी घटना न होती। सवाल सिर्फ इस एक गांव का नहीं है, सवाल पूरे राजस्थान और देश के उन हजारों स्कूलों का है जो जर्जर हालत में हैं और जहां बच्चे हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने जाते हैं।

अब जो सवाल सबके ज़हन में है — क्या पुरानी और नई दोनों सरकारों के मुख्यमंत्री इस हादसे की ज़िम्मेदारी लेंगे?
जवाब है: शायद नहीं। क्योंकि आमतौर पर हमारे देश में राजनीतिक नेतृत्व "जवाबदेही" से ज़्यादा "जवाबबाज़ी" में विश्वास करता है।

वर्तमान भाजपा सरकार कहेगी कि ये तो पिछली सरकार की लापरवाही थी।

पिछली कांग्रेस सरकार कहेगी कि 20 महीने में आप क्या कर रहे थे?

यही राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना है — सत्ता बदलती है, लेकिन सिस्टम नहीं।
नतीजा? जानें जाती हैं, जांचें बैठती हैं और सब भुला दिया जाता है।

हमें यह समझना होगा कि "जांच" कोई समाधान नहीं है, "सुधार" ही समाधान है।
जब तक शिक्षा को, खासकर सरकारी स्कूलों को राजनीति से ऊपर रखकर देखा नहीं जाएगा, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जाएंगी।

क्या होना चाहिए?

दोनों मुख्यमंत्रियों (पूर्व और वर्तमान) को नैतिक और प्रशासनिक रूप से जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए।

एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति गठित की जानी चाहिए जो पिछले 10 वर्षों में स्कूल भवनों की हालत और मरम्मत योजनाओं की जांच करे।

दोषी अधिकारियों और जिम्मेदार नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो, ताकि अगली बार कोई इस जिम्मेदारी से बच न सके।

अब वक्त आ गया है कि सिर्फ नेताओं को नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र को जवाबदेह बनाया जाए।
अगर हम आज नहीं चेते, तो आने वाले कल में और कितनी मासूम जानें गंवानी पड़ेंगी, इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता।