रविवार, 15 अप्रैल 2018

माता ही बालक की प्रथम गुरु: डॉ. मेहता

बांसवाड़ा -बालक के सर्वांगीण विकास में माता की भूमिका इसलिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि माती ही बालक की प्रथम गुरु होती है। बालक माँ के गर्भ से ही संस्कार ग्रहण करना प्रारंभ कर देता है अतः माँ परिवार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह है कि बालक के जन्म के बाद उसके सामने अपने अच्छे व्यवहार द्वारा अच्छे संस्कार प्रदान करें क्योंकि बालक अनुकरण से ही सीखता है। बच्चों को परिवार में ऐसे संस्कार दिए जाने चाहिए जिससे वे समाज और राष्ट्र के विकास में सहायक बन सकें। उक्त विचार मुख्य वक्ता डॉ. आशा मेहता ने राष्ट्र सेविका समिति द्वारा माही कॉलोनी स्थित राम मंदिर परिसर में आयोजित बालक के सर्वांगीण विकास में माँ की भूमिका विषयक गोष्ठी में व्यक्त किए।
अक्षय तृतीय पर होने वाले बाल विवाह विषय पर बोलते हुए डॉ. दीपिका राव ने कहा कि बाल विवाह के अनेक दुष्परिणाम हैं। इनको रोकने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 बना है। बाल विवाह की कुप्रथा से समाज को मुक्त करने के लिए लोगों की जागरूक करने की आवश्यकता है।
जिला कार्यवाहिका श्रीमती निशा जोशी ने आगामी माह में होने वाले शिविर की जानकारी दी तथा सभी से आग्रह किया कि अधिक से अधिक संख्या में भाग लेकर शिविर को सफल बनाएं। गोष्ठी में शीतल भंडारी, दुर्गा शर्मा, मंजु औली, जया, अनुसूया त्यागी, चन्द्रप्रभा, चन्दनबाला, इन्दुबाला, मुकुलेश ने भी विचार व्यक्त किए।

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